Tuesday, February 24, 2009

सभ्यता ???

हम सभ्य हैं
क्यूंकि -
हम छुरी कांटे से खाते हैं,
तन की महक को डियो से छुपाते हैं;
लोगों के बीच जोर से हँसते नहीं हैं,
और खांसने से पहले कहते हैं - एक्स्क्युस मी!!

1 comment:

  1. हमको असभ्य ही रहने दो

    सभ्यता की ये नयी परिभाषा
    हमको कितना असभ्य बनाती है
    और अपने इस मोहपाश मे
    हमको बाँधे जाती है
    कुछ पाने की आशा में
    हम कितना कुछ खो देते है
    छुरी काँटे के च्क्कर में
    अक्सर हम भुखे सोते है.
    दो रोटी के लिये हम
    दो सौ रुपये देते हैं
    पेट तो भर जाता है
    पर आत्मा की त्रप्ति खोते हैं

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