चाहता हूँ मैं बहुत
कुछ दूर उड़ना चाहता हूँ
इस फलक पर इस ज़मीं पर
नाम लिखना चाहता हूँ
हर सुबह मैं सोचता हूँ
आज इक शुरुआत कर दूं
आज कुछ ऐसा करुँ मैं
आज ही इतिहास रच दूं
पीढियां जो याद रखें
एक ऐसा काम कर दूं
अमन जो लाये जहां में
वो कोई तरकीब कर दूं
ना कोई लूटे किसी को
ना किसी को डर किसी से
हर कोई मेहनत करे
और रात को सोये ख़ुशी से
सोचता हूँ पर क्या मुमकिन
है जहां को यूँ बदलना
जहर जो दिल में घुला है
उस जहर में फूल खिलना
नहीं आसान जानता पर
हाथ पर क्यों हाथ रखूँ
बदल सकता नहीं सबको
खुदी को क्यूँ न बदल दूं
इस समर में आज मैं
अभिमन्यु बन कर कूद जाऊं
मर गया तो भी दिलों में
दीप आशा के जलाऊँ
पर सोचता हूँ एक पल
ये बलि कहीं न व्यर्थ जाए
मृत्यु से भय पलायन का
भाव लोगों में न लाये
इसलिए मैं स्वयं को
शस्त्रास्त्र से सज्जित करूंगा
प्रेम से और शक्ति से
मैं शान्ति को मंडित करूंगा
ले मन में यह संकल्प
मैं रणनीति का अनुसरण करता
किन्तु कुछ पल बाद ही
आलस्य मन में चरण रखता
साथ में शंकाओं का भी
जाल मुझको बाँध लेता
दिव्स्वप्न का सागर मुझे
निद्रा जगत में खींच लेता
स्वप्न में भी मैं सभी को
सुखी करना चाहता हूँ
और जगकर स्वप्न को
फिर सत्य करना चाहता हूँ
मैं सभी के संग
कुछ पल शांत जीना चाहता हूँ
कुछ देर चिंता और भय से
परे उड़ना चाहता हूँ।
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hamari shubhkamna aap ke saath hai. narayan narayan
ReplyDeleteबदल सकता नहीं सबको
ReplyDeleteखुदी को क्यूँ न बदल दूं
स्वप्न में भी मैं सभी को
सुखी करना चाहता हूँ
kaash ! aapki abhilasha puri ho.
बहुत ही सुन्दर अभिलाषा...........शुभकामनाऎं.
ReplyDeleteब्लोगिंग जगत मे स्वागत है
ReplyDeleteसुन्दर रचना के लिये शुभकामनाएं
भावों कि अभिव्यक्ति मन को सुकून पहुचाती है
लिखते रहिये लिखने वालों कि मन्ज़िल यही है
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
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