Tuesday, February 10, 2009

चाहता हूँ

चाहता हूँ मैं बहुत
कुछ दूर उड़ना चाहता हूँ
इस फलक पर इस ज़मीं पर
नाम लिखना चाहता हूँ
हर सुबह मैं सोचता हूँ
आज इक शुरुआत कर दूं
आज कुछ ऐसा करुँ मैं
आज ही इतिहास रच दूं
पीढियां जो याद रखें
एक ऐसा काम कर दूं
अमन जो लाये जहां में
वो कोई तरकीब कर दूं

ना कोई लूटे किसी को
ना किसी को डर किसी से
हर कोई मेहनत करे
और रात को सोये ख़ुशी से
सोचता हूँ पर क्या मुमकिन
है जहां को यूँ बदलना
जहर जो दिल में घुला है
उस जहर में फूल खिलना
नहीं आसान जानता पर
हाथ पर क्यों हाथ रखूँ
बदल सकता नहीं सबको
खुदी को क्यूँ न बदल दूं
इस समर में आज मैं
अभिमन्यु बन कर कूद जाऊं
मर गया तो भी दिलों में
दीप आशा के जलाऊँ
पर सोचता हूँ एक पल
ये बलि कहीं न व्यर्थ जाए
मृत्यु से भय पलायन का
भाव लोगों में न लाये
इसलिए मैं स्वयं को
शस्त्रास्त्र से सज्जित करूंगा
प्रेम से और शक्ति से
मैं शान्ति को मंडित करूंगा
ले मन में यह संकल्प
मैं रणनीति का अनुसरण करता
किन्तु कुछ पल बाद ही
आलस्य मन में चरण रखता
साथ में शंकाओं का भी
जाल मुझको बाँध लेता
दिव्स्वप्न का सागर मुझे
निद्रा जगत में खींच लेता
स्वप्न में भी मैं सभी को
सुखी करना चाहता हूँ
और जगकर स्वप्न को
फिर सत्य करना चाहता हूँ
मैं सभी के संग
कुछ पल शांत जीना चाहता हूँ
कुछ देर चिंता और भय से
परे उड़ना चाहता हूँ।

4 comments:

  1. बदल सकता नहीं सबको
    खुदी को क्यूँ न बदल दूं

    स्वप्न में भी मैं सभी को
    सुखी करना चाहता हूँ
    kaash ! aapki abhilasha puri ho.

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  2. बहुत ही सुन्दर अभिलाषा...........शुभकामनाऎं.

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  3. ब्लोगिंग जगत मे स्वागत है
    सुन्दर रचना के लिये शुभकामनाएं
    भावों कि अभिव्यक्ति मन को सुकून पहुचाती है
    लिखते रहिये लिखने वालों कि मन्ज़िल यही है
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
    www.zindagilive08.blogspot.com
    आर्ट के लि‌ए देखें
    www.chitrasansar.blogspot.com

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