हम सभ्य हैं क्यूंकि - हम छुरी कांटे से खाते हैं, तन की महक को डियो से छुपाते हैं; लोगों के बीच जोर से हँसते नहीं हैं, और खांसने से पहले कहते हैं - एक्स्क्युस मी!!
सभ्यता की ये नयी परिभाषा हमको कितना असभ्य बनाती है और अपने इस मोहपाश मे हमको बाँधे जाती है कुछ पाने की आशा में हम कितना कुछ खो देते है छुरी काँटे के च्क्कर में अक्सर हम भुखे सोते है. दो रोटी के लिये हम दो सौ रुपये देते हैं पेट तो भर जाता है पर आत्मा की त्रप्ति खोते हैं
Even before I was born, I became part of a family, a caste, a religion, a state, a country and so many other groups. Now I'm just redefining myself as a human.
हमको असभ्य ही रहने दो
ReplyDeleteसभ्यता की ये नयी परिभाषा
हमको कितना असभ्य बनाती है
और अपने इस मोहपाश मे
हमको बाँधे जाती है
कुछ पाने की आशा में
हम कितना कुछ खो देते है
छुरी काँटे के च्क्कर में
अक्सर हम भुखे सोते है.
दो रोटी के लिये हम
दो सौ रुपये देते हैं
पेट तो भर जाता है
पर आत्मा की त्रप्ति खोते हैं