कंकाल मात्र वह शेष, धरा पर विचरण करता
यदा कदा जो अपने क्षुधित उदर को भरता
जीवन में उसके नाममात्र भी हास नही है
कहीं भूत या भविष्य में उल्लास नही है
आशा की कोई रश्मि जिसे ना मार्ग दिखाती
उसके जीवन में नीरवता ही राग सुनाती
Wednesday, March 11, 2009
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